धर्म पर बाबासाहेब आंबेडकर के विचार।
- दुःख निवारण के लिए बौद्ध धम्म का मार्ग ही सुरक्षित मार्ग है। बौद्ध धर्म पूर्णतः भारतीय है और गौतम बुद्ध न केवल भारत के उद्धारक थे बल्कि संपूर्ण मानवता के उन्नायक थे।
- धर्म का ध्येय इंसान और भगवान के बीच संबंध न होकर, इंसान इंसान के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना होना चाहिए।
- अंधविश्वास और असमानता ब्राम्हणवाद के आधार है।
- जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बनाए रखे, वह धर्म नही गुलाम बनाए रखने का षड्यंत्र है।
- जिस धर्म में मनुष्य के साथ मनुष्यता का व्यवहार करना मना है, वह धर्म, धर्म नही उदंडता है।
- ईश्वर में विश्वास करने से केवल अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है, उसीसे पूजा पाठ की उत्पत्ति होती है, पूजा पाठ से पुजारियों का वर्ग उत्पन्न होता है, जो अंधविश्वासों को जन्म देता है। वह वर्ग समाज की सम्यक दृष्टि को नष्ट करता है।
- धर्म वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर सही उतरना चाहिए।
- सामाजिक एकता के बिना राजनैतिक एकता प्राप्त करना कठिन है, यदि प्राप्त भी हो जाए तो वह इस मौसमी पौधे की तरह होगी जो मामूली हवा के झोंके से जड़ से ही उखड़ जाता है।
- जिस धर्म में अपने ही अनुयाइयों के बीच भेदभाव है, वह धर्म नही पक्षपात है, को धर्म अपने करोड़ो अनुयाइयों को कुत्तों और अपराधियो से भी बद्तर मानता है और उन पर नारकीय मुसीबते बरसाता हैं वह धर्म हो ही नही सकता।
- धर्म निरपेक्षता का अर्थ है की सरकार लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने के लिए बाध्य न करें।
- मैं धर्म चाहता हूं, धर्म के नाम पर पाखंड नही, भारत में सामाजिक क्रांति के बिना सामाजिक व धार्मिक सुधार असंभव है।
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1 Comments
Thank You TheAmbedkarOfficial team to gave us such a pious message.
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