जातिवाद पर बाबासाहेब आंबेडकर क्या कहते है, जानिए! l Babasaheb Ambedkar's Thoughts on Castism l

 


जातिवाद पर बाबासाहेब के विचार

  1. जातिवाद को समाप्त करके ही स्वराज को सुरक्षित किया जा सकता है।
  2. जैसे ऊंची नीची जमीन से अच्छी पैदावार की आशा नही की जा सकती, उसी प्रकार समाज में ऊंच नीच की भावना के रहते, राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती।
  3. अस्पृश्यता गुलामी से भी बदतर स्थिति है।
  4. छुआछूत समाप्त करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
  5. जातिवाद को समाप्त किए बिना अस्पृश्यता समाप्त करना असंभव है।
  6. अस्पृश्यता ने अछूतो के मानवीय अधिकार चीन रखे है।
  7. प्रत्येक हिन्दू अपने जाति के व्यक्ति को ही नेता मानता है, चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, दूसरे को नही, चाहे दूसरा कितना ही अच्छा हो, वह पात्रता नही जाती देखता है। उसकी हमदर्दी भी अपनी जाति तक सीमित होती है।
  8. हिंदू अपनी जाति का भक्त हो सकता है, देश का नही।
  9. जातिवाद लोगों की एक राय और संगठन नहीं बनने देता।
  10. जातिवाद ने शुद्रो व अतिशुद्रो की खुशियों को चीन है, उनके स्वाभिमान की भावना को कुचला है।
  11. हिंदू  जातियों का समूह एक किला नही है बल्कि आपस में लड़कर नष्ट होने वाले समूह है, जो अपने स्वार्थ के लिए लड़ते रहते है।
  12. जात पात के रहते न समाज संगठित हो सकता है और न उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत हो सकती है।
  13. सवर्ण हिंदू, मुसलमानो के साथ झगड़ा करते समय ही दलितों को हिंदू मानते हैं, अन्यथा नहीं।
  14. जाती व्यवस्था ने जाती की पवित्रता नही बनाई, बल्कि समाज को टुकड़ों में बांट कर लोगों का मनोबल गिराया है।
  15. देश की सभी समस्याओं की जड़ जातिवाद है।
  16. जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना राजनैतिक आजादी व्यर्थ है।
  17. वर्ण और जातियां राष्ट्र विरोधी है, इनको नष्ट करके ही हम एक राष्ट्र बन सकते है।
  18. जब तक जाति प्रथा अस्तित्व में रहेगी, तब तक आपको हिंदू धर्म और समाज में समान दर्जा मिलना असंभव है।



सोशल मीडिया पर हमसे जुड़े












Comments