जातिवाद पर बाबासाहेब के विचार
- जातिवाद को समाप्त करके ही स्वराज को सुरक्षित किया जा सकता है।
- जैसे ऊंची नीची जमीन से अच्छी पैदावार की आशा नही की जा सकती, उसी प्रकार समाज में ऊंच नीच की भावना के रहते, राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती।
- अस्पृश्यता गुलामी से भी बदतर स्थिति है।
- छुआछूत समाप्त करना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
- जातिवाद को समाप्त किए बिना अस्पृश्यता समाप्त करना असंभव है।
- अस्पृश्यता ने अछूतो के मानवीय अधिकार चीन रखे है।
- प्रत्येक हिन्दू अपने जाति के व्यक्ति को ही नेता मानता है, चाहे वह कितना ही क्रूर क्यों न हो, दूसरे को नही, चाहे दूसरा कितना ही अच्छा हो, वह पात्रता नही जाती देखता है। उसकी हमदर्दी भी अपनी जाति तक सीमित होती है।
- हिंदू अपनी जाति का भक्त हो सकता है, देश का नही।
- जातिवाद लोगों की एक राय और संगठन नहीं बनने देता।
- जातिवाद ने शुद्रो व अतिशुद्रो की खुशियों को चीन है, उनके स्वाभिमान की भावना को कुचला है।
- हिंदू जातियों का समूह एक किला नही है बल्कि आपस में लड़कर नष्ट होने वाले समूह है, जो अपने स्वार्थ के लिए लड़ते रहते है।
- जात पात के रहते न समाज संगठित हो सकता है और न उनमें राष्ट्रीय भावना जागृत हो सकती है।
- सवर्ण हिंदू, मुसलमानो के साथ झगड़ा करते समय ही दलितों को हिंदू मानते हैं, अन्यथा नहीं।
- जाती व्यवस्था ने जाती की पवित्रता नही बनाई, बल्कि समाज को टुकड़ों में बांट कर लोगों का मनोबल गिराया है।
- देश की सभी समस्याओं की जड़ जातिवाद है।
- जातिविहीन समाज की स्थापना के बिना राजनैतिक आजादी व्यर्थ है।
- वर्ण और जातियां राष्ट्र विरोधी है, इनको नष्ट करके ही हम एक राष्ट्र बन सकते है।
- जब तक जाति प्रथा अस्तित्व में रहेगी, तब तक आपको हिंदू धर्म और समाज में समान दर्जा मिलना असंभव है।
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